कंठ तक कर्ज में डूबा चीन, सरकार और बैंक खाली कर रहे अपनी तिजोरी, भारत में कैसी स्थिति? जानिए

दूर से चमकने वाला चीन अंदर से कितना खोखला हो चुका है, इस बात का अंदाजा उसके कर्ज को देखकर लगता है. हाल ही में चीन के सेंट्रल बैंक (पीपल्स बैंक ऑफ चाइना) के डिप्टी गवर्नर शुआन चांगनेंग ने बताया कि चीन का कुल कर्ज उसकी जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के 300 फीसदी से भी ज्यादा हो गया है और यह आगे भी बढ़ सकता है. इसका मतलब ये कि जितना पैसा चीन एक साल में कमाता है, उससे तीन गुना से ज्यादा कर्ज चढ़ा चुका है. इसके बावजूद चीन का सेंट्रल बैंक जरूरत पड़ने पर ब्याज दरें कम करके या बाजार में ज्यादा पैसा डालकर लोगों को राहत देने की कोशिश करेगा. भारत पर प्रतिशत के हिसाब से काफी कम कर्ज है और स्थिति कंट्रोल में नजर आती है.

शुआन ने कहा कि भारी कर्ज के बावजूद चीन की सरकार और बैंक ढीली नीति चलाएंगे. मतलब कि पैसे को आसानी से इस्तेमाल करने की छूट देंगे, ताकि अर्थव्यवस्था को सपोर्ट मिले. उनके पास ऐसा करने के लिए काफी स्पेस है. उन्होंने ये भी बताया कि चीन में M2 (पैसों की सप्लाई, यानी बाजार में कितना पैसा घूम रहा है) GDP से 200 फीसदी से ज्यादा है. और मैक्रो लिवरेज रेश्यो (पूरे देश का कर्जा और कमाई का हिसाब) 300% से ऊपर चला गया है, और ये दोनों अभी और बढ़ रहे हैं. एक्सपर्ट भी मानकर चल रहे हैं कि अमेरिकी टैरिफ के दबाव के चलते चीन के पास ढीली नीति अपनाना ही सबसे बेहतर विकल्प होगा.

चीन की सरकार ये कर्जा इसलिए बढ़ा रही है, ताकि देश की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़े. शुआन ने कहा कि सेंट्रल बैंक सही समय पर ब्याज दरें (इंटरेस्ट रेट) और रिजर्व रेश्यो (बैंकों को अपने पास रखना जरूरी कैश) कम करेगा. ये फैसला, वो देश के अंदर और बाहर की आर्थिक स्थिति और फाइनेंशियल मार्केट को देखकर लेंगे.

उन्होंने ये भी कहा कि आजकल दुनियाभर के सेंट्रल बैंक वालों के सामने बहुत सारी मुश्किलें हैं. भू-राजनीतिक समस्याएं, ग्लोबलाइजेशन का कम होना, और दुनिया के फाइनेंशियल मार्केट में उतार-चढ़ाव की वजह से चीजें अनिश्चित हैं.

चीन के मुकाबले भारत की क्या स्थिति
चीन की जीडीपी 2025 में लगभग 19.7 ट्रिलियन डॉलर (1,650 लाख करोड़ रुपये) होने का अनुमान है, जो 2023 के 17.8 ट्रिलियन डॉलर से 5 फीसद सालाना की दर से बढ़ रही है. लेकिन इसका कुल कर्ज 59.1 ट्रिलियन डॉलर (4,950 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंच चुका है. यह कर्ज सरकार, कंपनियों और आम लोगों ने लिया है, जिसका उपयोग इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने जैसे सड़कें, इमारतें और आर्थिक मदद के लिए किया गया है.

दूसरी ओर, भारत की जीडीपी 2025 में 4.1 ट्रिलियन डॉलर (343 लाख करोड़ रुपये) होने की उम्मीद है, जो 2023 के 3.4 ट्रिलियन डॉलर से 6-7% की सालाना वृद्धि को दर्शाती है. भारत का कुल कर्ज उसकी जीडीपी का 180 फीसदी के आसपास है, यानी लगभग 7.4 ट्रिलियन डॉलर (620 लाख करोड़ रुपये). साफ है कि चीन की अर्थव्यवस्था भारत से पांच गुना बड़ी है, लेकिन उसका कर्ज भारत के मुकाबले कई गुना ज्यादा है.

बता दें कि यह डेट टू जीडीपी (debt-to-GDP) रेश्यो नहीं है. बिजनेस टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक वह कर्ज भारत पर 85.5 फीसदी है, जबकि चीन पर 88.6 प्रतिशत है. जिस कर्ज की यहां बात हो रही है, वह पूरा कर्ज मिलाकर है, जिसे सरकार और कंपनियों और आम लोगों ने लिया है.

चीन और भारत की ग्रोथ में फर्क
चीन और भारत की आर्थिक नीतियां एक-दूसरे से काफी अलग हैं. चीन का कर्ज बहुत ज्यादा होने के बावजूद उसकी सरकार तेजी से आगे बढ़ने के लिए और ज्यादा निवेश करने और कर्ज बढ़ाने की नीति अपनाए हुए है. चीन का मानना है कि अगर उसकी अर्थव्यवस्था को तेज रखना है, तो उसे कंपनियों और स्थानीय सरकारों को ज्यादा उधारी देनी होगी, ताकि वे विकास की रफ्तार बनाए रख सकें. दूसरी तरफ, भारत की नीति अभी भी संतुलित बनी हुई है. भारत की सरकार ज्यादा कर्ज लेने के बजाय धीरे-धीरे और सुरक्षित तरीके से आगे बढ़ने को प्राथमिकता दे रही है. इसका मतलब यह है कि भारत आर्थिक रूप से उतना आक्रामक नहीं है जितना चीन, लेकिन यह अपनी वित्तीय स्थिरता बनाए रखने की कोशिश कर रहा है.

चीन के पास भरा पड़ा विदेशी मुद्रा भंडार
चीन के पास 3 ट्रिलियन डॉलर (251 लाख करोड़ रुपये) का विदेशी मुद्रा भंडार है, जबकि भारत के पास 600 बिलियन डॉलर (50 लाख करोड़ रुपये) का भंडार है. इससे दोनों देशों का जोखिम अलग-अलग हो जाता है. आज चीन का कर्ज बहुत ज्यादा लगता है, लेकिन भारत का कर्ज भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है, जो भविष्य में चुनौती बन सकता है. विदेशी मुद्रा भंडार का अधिक होना चीन के लिए पॉजिटिव हो सकता है. लेकिन भारत के लिए पॉजिटिव यह है कि वह चीन की तरह कर्ज में गले तक डूबा हुआ नहीं है

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